मुहब्बत में मजहबी बहाना और है
गर दिल नहीं लगाना ये फसाना और है ।
तुम समझती हो कि मैं कुछ नहीं समझता
ये समझना और है समझाना और है ।
बुरा हूँ लाख सही सीने में इक दिल है मेरे भी
ये तुम नहीं समझती मैं समझता हूँ और है ।
बस दूर जाना है तुम्हें मुझसे चली जाओ बेशक
हम मर जाएगें तुम्हें क्या ये जमाना और है ।।
शायर / कवि :- अनीष राज
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